माइल-ए-गिर्या मैं याँ तक हूँ कि आज़ा पे मिरे
जिस जगह दाग़ दें वाँ दीदा-ए-तर पैदा हो
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जिस्म-ए-ख़ाकी को बनाया लाग़री ने ऐन-रूह
न आया शाम भी घर फिर के अपने
हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
हम से वो बे-सबब उलझती है
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस
शेर दौलत है कहाँ की दौलत
जी से मुझे चाह है किसी की
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
जिस कू मैं हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द
गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ