लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
कौन से शहर में होता है किधर होता है
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ऐ ग़म-ज़दा ज़ब्त कर के चलना
मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
गर ख़ाक से हमारी पुतला कोई बनावे
ऐ 'मुसहफ़ी' तुर्बत का मिरी नाम न लेना
शब तबक़ में आसमाँ के गिर पड़े थे मेरे अश्क
हर चंद अमर्दों में है इक राह का मज़ा
सुल्ह-ए-कुल में मिरी गुज़रे है मोहब्बत के बीच
दम ग़नीमत है कि वक़्त-ए-ख़ुश-दिली मिलता नहीं
खा लेते हैं ग़ुस्से में तलवार कटारी क्या
लेखे की याँ बही न ज़र-ओ-माल की किताब