लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का
अज़ीज़ो अब भी मिरी कुछ दिलावरी देखी
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'मुसहफ़ी' कुछ कम नसारा से नहीं
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है
उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
तू जो जाता है वहीं नित दौड़ दौड़ ऐ 'मुसहफ़ी'
कूचा-ए-यार में रहने से नहीं और हुसूल
शाहिद रहियो तू ऐ शब-ए-हिज्र
इक दिन तो लिपट जाए तसव्वुर ही से तेरे
जी जिस को चाहता था उसी से मिला दिया
हर्बा है आशिक़ों का फ़क़त आह-ए-पेचदार
दिल दुखा ही करे है सीने में