लहरों का थरथराना क्यूँ-कर पसंद आवे
यानी नज़र में अपनी ख़ुश-गातियाँ हैं तेरी
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दिल में मुर्ग़ान-ए-चमन के तो गुमाँ और ही है
रात दिन गर्दिश में है पर हो नहीं सकता हनूज़
ऐसे डरे हैं किस की निगाह-ए-ग़ज़ब से हम
जागा है रात प्यारे तू किस के घर जो तेरी
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता
तेरे कूचे से सफ़र मैं ने किया था जिस दिन
पीछे पड़ी हैं दिल के बे-तरह मेरी आँखें
रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है
सैल-ए-गिर्या का मैं ममनूँ हूँ कि जिस की दौलत