लग रही है ख़ाना-ए-दिल को हमारे आग हाए
और हम चारों तरफ़ फिरते हैं घबराए हुए
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(298) Peoples Rate This
उस गली में जो हम को लाए क़दम
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
तमाशे की शक्लें अयाँ हो गई हैं
तू ने मुँह फेरा और उस का नूर सा जाता रहा
गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ
यारान-ए-सुख़न-गो की है वो कंपनी अपनी
पर्दा-ए-गोश-ए-असीराँ न हुई इक शब-ए-गर्म
इस इमारत पर न कर मुनइम ग़ुरूर
मेहनत पे टुक नज़र कर सूरत गर अज़ल ने
तन्हा न वो हाथों की हिना ले गई दिल को
शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी