क्यूँ नीची नज़रें कर लीं मियाँ ये तो तू बता
आईना देखते ही तुझे क्या हया लगी
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काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़
जब तक कि तिरी गालियाँ खाने के नहीं हम
'मुसहफ़ी' तू ने ज़ि-बस गुल के लिए हैं बोसे
बर्क़-ए-रुख़्सार-ए-यार फिर चमकी
उस गली में जो हम को लाए क़दम
क्या नाज़ुकी बदन की उस रश्क-ए-गुल के कहिए
मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
मिज़्गाँ-ज़दन से कम है ज़मान-ए-नमाज़-ए-इश्क़
आह हमराज़ कौन है अपना
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का
आदमी से आदमी की जब न हाजत हो रवा