क्या क्या बदन-ए-साफ़ नज़र आते हैं हम को
क्या क्या शिकम ओ नाफ़ नज़र आते हैं हम को
Allama Iqbal
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(295) Peoples Rate This
शब-ए-हिज्राँ थी मैं था और तन्हाई का आलम था
आशिक़ कहें हैं जिन को वो बे-नंग लोग हैं
बुलबुलो बाग़बाँ को क्यूँ छेड़ा
जब घर से वो बाद-ए-माह निकले
बीमार दिल जुदा है इधर मैं उधर जुदा
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
तो माइल-ए-उश्शाक़-कुशी है तो यहाँ भी
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर
ये रोज़ ढूँढ लाए है इक ख़ूब-रू नया
जा जो इक दिन मिल गई पहलू में शोख़ी देखियो