क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
मुर्दा भी जो पहलू में सुलाता नहीं मुझ को
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मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
तिरे मुँह छुपाते ही फिर मुझे ख़बर अपनी कुछ न ज़री रही
ज़ि-बस ख़ून-ए-ग़लीज़ आँखों से आया
बारा-वफ़ातें बीसवीं झड़ियाँ हैं सौ जगह
जलता है जिगर तो चश्म नम है
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
दिल के नगर में चार तरफ़ जब ग़म की दुहाई बैठ गई
किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार
किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली दहर
दिल और सियह हो गए माह-ए-रमज़ाँ में