कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में फिरता हूँ भटकता कब का
शब-ए-तारीक है और मिलती नहीं राह कहीं
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(248) Peoples Rate This
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
ख़ुदा की क़सम फिर तो क्या ख़ैर होवे
ज़ीं-साज़ी अगर आती मुझे मैं तो मिरी जाँ
तिरा शौक़-ए-दीदार पैदा हुआ है
न आया शाम भी घर फिर के अपने
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों
अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह
जी से मुझे चाह है किसी की