किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली-ए-दहर
ये क़हबा रोज़-ए-अज़ल से है कुछ तलाक़-नसीब
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अज़-बस-कि जी है तुझ बिन बेज़ार ज़िंदगी से
मैं तो समझूँगा जो समझाते हो मुझ को हर घड़ी
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप
खड़ा न सुन के सदा मेरी एक यार रहा
मैं तो जाता हूँ तरफ़ काबे के पर काफ़िर ये पाँव
बंद भी आँखों को ज़री कीजिए
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर
जो मुझ आतिश-नफ़्स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी
दिल में है उस के मुद्दई का इश्क़
मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल