किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
ढूँडूँ हूँ बहुत और शब-ए-फ़ुर्क़त नहीं मिलती
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(274) Peoples Rate This
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा
दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है
सफ़्फ़ाक इब्तिदा से वो बे-रहम है ग़लत
दुख़्तर-ए-रज़ की हूँ सोहबत का मुबाशिर क्यूँ-कर
किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
सोच दिन रात यही है तिरे दीवाने की
मैं पहरों घर में पड़ा दिल से बात करता हूँ
उम्र सय्याद की गुज़री इसी जासूसी में
लब बंद ही रक्खो, नहीं फिर और करेगा
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के