ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
इश्क़ ने शक्लें ये सब दिखलाइयाँ
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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इस इमारत पर न कर मुनइम ग़ुरूर
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
पढ़ न ऐ हम-नशीं विसाल का शेर
सैल-ए-गिर्या का मैं ममनूँ हूँ कि जिस की दौलत
चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़
था जो शेर-ए-रास्त सर्व-ए-बोसतान-ए-रेख़्ता
हम दिल को लिए बर-सर-ए-बाज़ार खड़े हैं
सहव और सुक्र में रहते हैं तभी तो फ़ुक़रा
हमेशा शेर कहना काम था वाला-निज़ादों का
होश उड़ जाएँगे ऐ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ तेरे
ले गया काजल चुरा दुज़्द-ए-हिना
क्या रेख़्ता कम है 'मुसहफ़ी' का