ख़्वाहिश-ए-वस्ल तो रखता हूँ बहुत जी में वले
क्या करूँ मैं जो मिरे दिल से तिरा दिल न मिले
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(303) Peoples Rate This
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
'मुसहफ़ी' रशहा-ए-क़लम से मिरे
किस की ख़ातिर को मुक़द्दम रख्खूँ मैं हैरान हूँ
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
आप हर दम जो ये कहते हैं कि तू क्यूँ है खड़ा
जान जानी है मिरी ऐ बुत-ए-कम-सिन तुझ पर
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
ऐ 'मुसहफ़ी' अब चखियो मज़ा ज़ोहद का तुम ने
मज़हब की मेरे यार अगर जुस्तुजू करें
इस इमारत पर न कर मुनइम ग़ुरूर