ख़ुर्शीद-रू हमारा जिस से मिलेगा हर सुब्ह
दानिस्ता वो नमाज़ें अपनी क़ज़ा करेगा
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(265) Peoples Rate This
तख़्ता-ए-आब-ए-चमन क्यूँ न नज़र आवे सपाट
तिरे मुँह छुपाते ही फिर मुझे ख़बर अपनी कुछ न ज़री रही
वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर
रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
गर हम से न हो वो दिल-सिताँ एक
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
पैवस्ता गर्द-ए-दश्त रही गर तह-ए-दरूँ
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
ताब-ओ-ताक़त रहे क्या ख़ाक कि आज़ा के तईं
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख