ख़ूब-रूयों की मोहब्बत से करें क्यूँ तौबा
दीन अपना है यही और यही इस्लाम अपना
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
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गर हम से न हो वो दिल-सिताँ एक
आए हो तो ये हिजाब क्या है
जिस को कहते हैं अरसा-ए-हस्ती
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
तेरी इस्मत में हमें शक नहीं ऐ माया-ए-नाज़
शायद कि किसी और से था वस्ल का वादा
रुख़ से लहरा कर ज़नख़दाँ के हैं माइल मु-ए-ज़ुल्फ़
हर-चंद कि बात अपनी कब लुत्फ़ से ख़ाली है
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया