काँटा हुआ हूँ सूख के याँ तक कि अब सुनार
काँटे में तौलते हैं मिरे उस्तुख़्वाँ का बोझ
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(319) Peoples Rate This
दर तलक जाने की है उस के मनाही हम को
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
जान को जैसे निकाले है कोई क़ालिब से
इक जाम-ए-मय की ख़ातिर पलकों से ये मुसाफ़िर
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
या-रब मिरी उस बुत से मुलाक़ात कहीं हो
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
अक्स से अपने अगर राह नहीं तुम को तो जान
हो चुका नाज़ मुँह दिखाइए बस
हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से निकला न ये पा-ए-जुनूँ
उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया