कल सू-ए-ग़ैर उस ने कई बार की निगाह
लाखों के बीच छुपती नहीं प्यार की निगाह
Mohsin Naqvi
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Gulzar
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Jaun Eliya
Parveen Shakir
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वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
शब हम को जो उस की धुन रही है
अपना रफ़ीक़-ओ-आश्ना ग़ैर-ए-ख़ुदा कोई नहीं
वहीं थे शाख़-ए-गुल पर गुल जहाँ जम्अ
'मुसहफ़ी' तू ने ज़ि-बस गुल के लिए हैं बोसे
काम में अपने ज़ुहूर-ए-हक़ है आप
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
ऐ फ़लक किस ने कहा था तुझे ये तो बतला
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
नसीम-ए-सुब्ह-ए-चमन से इधर नहीं आती
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम