कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
आज याँ होती है लैला की सवारी तय्यार
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कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
कैसी फ़रफ़र ज़बान चलती है
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
इक बिजली की कौंद हम ने देखी
सिधारी क़ुव्वत-ए-दिल ताब और ताक़त से कह दीजो
लिए आदम ने अपने बेटे पाँच
सुन्नी ओ शीआ के क़ज़िए में है हैराँ मिरी अक़्ल
तू ने मुँह फेरा और उस का नूर सा जाता रहा
सीने पे मेरे हर दम रखते हैं हाथ ख़ूबाँ