काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़
ग़ैर के घर से दिया कीजिए रौशन अपना
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(288) Peoples Rate This
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
पान खाने की अदा ये है तो इक आलम को
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
दिल के नगर में चार तरफ़ जब ग़म की दुहाई बैठ गई
इस गोशा-ए-उज़्लत में तन्हाई है और मैं हूँ
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
मादर-ए-दहर उठाती है जो हर दम मिरे नाज़
वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू
नसीबों से कोई गर मिल गया है
ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
वाँ लाल फड़कता है अमीरों के क़फ़स में
है माह कि आफ़्ताब क्या है