जो मुझ आतिश-नफ़स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी
अभी होने लगेंगे आबले महसूस शीशे में
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ज़ीं-साज़ी अगर आती मुझे मैं तो मिरी जाँ
ख़्वाब-ए-आराम में सोता था वो गुल क़हर हुआ
कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़
लग रही है ख़ाना-ए-दिल को हमारे आग हाए
क़ैस मिले तो उस से पूछूँ क्या तिरे जी में आई दिवाने
खेल जाते हैं जान पर आशिक़
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार
आता नहीं समझ में कि कहते हैं किस को इश्क़
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
शब हम को जो उस की धुन रही है
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार