जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब
हिन्दू हैं हमारे न मुसलमान हमारे
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(328) Peoples Rate This
जाँ-बर हो किस तरह तप-ए-सौदा से 'मुसहफ़ी'
'मुसहफ़ी' होता मुसलमान जो मुझ सा काफ़िर
दर तलक जाने की है उस के मनाही हम को
तुझ को ऐ सय्याद काविश ही अगर मंज़ूर है
तिरा शौक़-ए-दीदार पैदा हुआ है
ख़्वाब का दरवाज़ा कुइ मसदूद कर देता है रोज़
तन्हा न वो हाथों की हिना ले गई दिल को
उश्शाक़ का कुछ मैं ने आलम ही नया देखा
दिल दुखा ही करे है सीने में
उट्ठा गया फ़लक पे गिरा ख़ाक में मिला
अपना रफ़ीक़-ओ-आश्ना ग़ैर-ए-ख़ुदा कोई नहीं
जाते जाते राह में उस ने मुँह से उठाया जूँही पर्दा