जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
इतने तो गुनहगार ज़माने के नहीं हम
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दिल दुखा ही करे है सीने में
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
तेरी क़सम है अपना तो रुक जाए जी वहीं
शैख़ काबे को तू जा जाऊँ मैं बुत-ख़ाने को
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
आँखों को फोड़ा डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
दिल चुराना ये काम है तेरा
तुम बाँकपन ये अपना दिखाते हो हम को क्या
दिल को ये इज़्तिरार कैसा है
कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की
फिर ये कैसा उधेड़-बुन सा लगा