जीते अगर न हम तो क्यूँ ज़िल्लतें उठाते
खाई है दिल पे हम ने तलवार ज़िंदगी से
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(306) Peoples Rate This
बातें कई ज़बानी मैं ने कही हैं उस से
गुल ही इस बाग़ से जाने पे नहीं बैठा कुछ
आलम से हमारा कुछ मज़हब ही निराला है
पैरहन लूटे मज़े तेरी हम-आग़ोशी के
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
कैसा ये दिन है जो नहीं लाता है रू-ब-शाम
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
मक़्तल-ए-यार में टुक ले तो चलो ऐ यारो
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
ढे जाने का कुछ घर के मुझे ग़म नहीं इतना
है तमन्ना-ए-सैर-ए-बाग़ किसे