जिस कू में हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द
वो कूचा क्यूँके रू-कश-ए-चीन-ओ-चगिल न हो
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बिन ख़ूँ से लिक्खे कोई होता है नामा रंगीं
यक नाला-ए-आशिक़ाना है याँ
दुख़्तर-ए-रज़ की हूँ सोहबत का मुबाशिर क्यूँ-कर
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
किस ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम के आई है मुक़ाबिल
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
आँखें हैं जोश-ए-अश्क से पनघट
इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
मुद्दत से हूँ मैं सर-ख़ुश-ए-सहबा-ए-शाएरी
मिला है आशिक़ी में रुतबा-ए-पैग़म्बरी मुझ को