जी में आती है करूँ उन को मैं इक दिन सीधा
बाल ज़ुल्फ़ों के तिरी मुझ से कजी रखते हैं
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(314) Peoples Rate This
क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी'
बस-कि हों मिल्लत-ओ-मज़हब से जहाँ के आज़ाद
दारुश्शफ़ा-ए-इश्क़ में ले जा के हम को इश्क़
जलता है जिगर तो चश्म नम है
ज़ि-बस ख़ून-ए-ग़लीज़ आँखों से आया
रेख़्ता-गोई की बुनियाद 'वली' ने डाली
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
अब ख़ुदा मग़फ़िरत करे उस की
अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें
उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं
हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब