जब मैं ने कहा आँखें छुपा खोल दिया मुँह
जब मैं ने कहा मुँह को दिखा आँखें दिखाईं
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आशिक़ तो मिलेंगे तुझे इंसाँ न मिलेगा
ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल
तख़्ता-ए-आब-ए-चमन क्यूँ न नज़र आवे सपाट
अब ख़ुदा मग़फ़िरत करे उस की
बे-लाग हैं हम हम को रुकावट नहीं आती
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
यूँ है डलक बदन की उस पैरहन की तह में
शहर में मुझ से भड़कता था तसव्वुर तेरा
लाख हम शेर कहें लाख इबारत लिक्खें
गली में उस की हुई हल्क़ याँ तक आसूदा
ताब-ओ-ताक़त रहे क्या ख़ाक कि आज़ा के तईं
मरते मरते इसी बुत का मुझे कलमा पढ़ना