जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है
ले दौड़ें हैं आँसू वहीं आँखों की ग़राबें
Jaun Eliya
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उस्ताद कोई ज़ोर मिला क़ैस को शायद
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा
इक जाम-ए-मय की ख़ातिर पलकों से ये मुसाफ़िर
होवे न अज़ाब उस पे कभी जिस के पस-ए-मर्ग
कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को
ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
ख़ाना-ए-दिल पे बिना अर्श की तू रख तो सही