जा जो इक दिन मिल गई पहलू में शोख़ी देखियो
चुटकियाँ ले ले में नीला कर दिया पहलू-ए-दोस्त
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चश्म ने की गौहर-अफ़्शानी सरीह
मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ
किस के मजरूह गुलिस्ताँ में हैं मदफ़ूँ जो हनूज़
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन
गर हम से न हो वो दिल-सिताँ एक
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
आख़िर तो अर्श पर हैं अर्वाह-ए-शाइराँ भी
ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर