इस नौ-बहार में तो तरह गुल के ऐ नसीम
यूँ चाहिए कि ज़ख़्म-ए-दिल अपना रफ़ू न हो
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
हर-चंद कि वो जवाँ नहीं हम
कशिश ने इश्क़ की क्या काम कुछ किया थोड़ा
तेरे कूचे से सफ़र मैं ने किया था जिस दिन
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
मेरे दिल-ए-शिकस्ता को कहती है देख ख़ल्क़
सौ बार गया मैं उस के दर पर
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल
क्या दख़्ल किसी से मरज़-ए-इश्क़ शिफ़ा हो
सज्दा-गाह अपनी किए राह के रोड़े पत्थर
जब तक कि तिरी गालियाँ खाने के नहीं हम
सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ