हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
वर्ना ज़ुल्फ़ों की तरह मैं तो बिखर जाऊँगा
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जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम
जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
ज़ुल्फ़ों का बिखरना इक तो बला, आरिज़ की झलक फिर वैसी ही
किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
क्या किया उस का किसू ने बाग़ से जाती रही
कह गया कुछ तो ज़ेर-ए-लब कोई
बे-लाग हैं हम हम को रुकावट नहीं आती
कुफ़्र फैला है यहाँ तक कि ज़माने में कोई
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
कब सबा सू-ए-असीरान-ए-क़फ़स आती है
जूँ ही ज़ंजीर के पास आए पाँव