हम सुबुक-रूह असीरों के लिए लाज़िम है
क़फ़स-ए-गुल को करे बाद-ए-बहारी तय्यार
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
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पेच दे दे लफ़्ज़ ओ मअनी को बनाते हैं कुलफ़्त
अपना तो तूल-ए-उम्र से घबरा गया है जी
माइल-ए-गिर्या मैं याँ तक हूँ कि आज़ा पे मिरे
भूल जावे साहिब-ए-इक़बाल अपनी सर-कशी
तरफ़ा आलम है हमारा भी कि हर दम उस से
दिल ले गया है मेरा वो सीम-तन चुरा कर
उस गली में जो हम को लाए क़दम
क़लक़-ए-दिल से हैं जैसे मिरे रुख़्सारे ज़र्द
सीने के ज़ोर से भी मू भर नहीं उकसती
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
बातों में लगाए ही मुझे रखता है ज़ालिम
ने हाथ मिरा हाथ है ने जेब मिरी जेब