हम न शाना न सबा हैं नहीं खुलता है ये भेद
ऐंठती जाती है क्यूँ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ हम से
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
इक जाम-ए-मय की ख़ातिर पलकों से ये मुसाफ़िर
'मुसहफ़ी' रशहा-ए-क़लम से मिरे
उस के कूचे में सदा मुझ को नज़र आता है
अहल-ए-नसीहत जितने हैं हाँ उन को समझा दें ये लोग
मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं
हाल-ए-दिल-ए-बे-क़रार है और
यूँ चश्म-ए-तर से चेहरे पर आँसू हुए रवाँ
आसिफ़ुद्दौला-ए-मरहूम वो था शुस्ता-मिज़ाज
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
गए हैं यार अपने अपने घर दालान ख़ाली है