होवे न अज़ाब उस पे कभी जिस के पस-ए-मर्ग
छाती पे हो तावीज़ तिरे नक़्श-ए-क़दम का
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नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
तदबीर मआश इस जा है शर्त-ए-ख़िरद-मंदी
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
तू खुले बालों मिरे सामने आया मत कर
यार होता है मिरा लाला-अज़ार एक न एक
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
मैं तो जाता हूँ तरफ़ काबे के पर काफ़िर ये पाँव
चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़
गो ज़ख़्मी हैं हम पर उसे क्या ग़म है हमारा
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान