होश उड़ जाएँगे ऐ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ तेरे
गर मैं अहवाल लिखा अपनी परेशानी का
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ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
याँ तक किया मैं गिर्या कि ख़ूबाँ के इश्क़ में
देख कर इक जल्वे को तेरे गिर ही पड़ा बे-ख़ुद हो मूसा
ऐ ग़म-ज़दा ज़ब्त कर के चलना
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
रुख़ से लहरा कर ज़नख़दाँ के हैं माइल मु-ए-ज़ुल्फ़
हरगिज़ रहा न काफ़िर ओ मोमिन से उस को काम
इश्क़-ए-फ़ुज़ूँ में मेरे न हो दोस्तो कमी
आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत
ऐ 'मुसहफ़ी' तुर्बत का मिरी नाम न लेना
दुख़्तर-ए-रज़ की हूँ सोहबत का मुबाशिर क्यूँ-कर