होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
इक आह-ए-सर्द थी जो मिरी ग़म-गुसार-ए-दिल
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हर-चंद कि बात अपनी कब लुत्फ़ से ख़ाली है
इन आँखों से आब कुछ न निकला
आप हर दम जो ये कहते हैं कि तू क्यूँ है खड़ा
हम ने भेजा तो है उस गुल को ज़बानी पैग़ाम
पहलू में रह गया यूँ ये दिल तड़प तड़प कर
बैठे बैठे जो हम ऐ यार हँसे और रोए
आँखें हैं जोश-ए-अश्क से पनघट
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
हर-चंद कि वो जवाँ नहीं हम
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
भूल जावे साहिब-ए-इक़बाल अपनी सर-कशी