ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
हम को तो बस डुबो गईं नील के कटरे वालियाँ
तेग़ जो रक्खी सान पर सुध जो सँभाली उस ने टुक
वज़ाएँ नई तराशियाँ तरज़ें नई निकालीयाँ
हम पे तो बरसे सुब्ह तक ख़ंजर ओ तेग़ ओ तीर ही
अब्र-ए-बला से कम नहीं हिज्र की रातें कालियाँ
शोले की जूँ मदद करे दूद-ए-नख़स्त-ए-ख़ार-ओ-ख़स
मिस्सी से और धुआँ हुईं होंटों की उस की लालियाँ
मू-कमरान-ए-बाग़-ए-हुस्न लचकें जो मिस्ल-ए-शाख़-ए-बेद
दिल को न क्यूँ हिलावें फिर उन की ये नौ-नहालियाँ
इक शरर-ए-आह का मिरी बाइस-ए-शोर-ओ-शर हुआ
जुगनू को देख जिस तरह लड़के बजावें तालियाँ
साहिब-ए-नेमत इस तरह रहते हैं सब से सुर्ख़-रू
सू-ए-ज़मीं झुकी रहें मेवे की जैसे डालियाँ
किस से पढ़ावे कोई ख़त इंशा ही जिस का हो ग़लत
यानी कि उस ने बे-नुक़त भेजी हैं लिख के गालियाँ
कुंज-ए-क़फ़स में बाग़ से आए थे जो नए असीर
सौतें उन्हों की सारी रात मेरे जिगर में सालियाँ
'मुसहफ़ी' उस की बज़्म में भूके हैं नाज़ के जो लोग
गालियों की जगह उन्हों मिलती हैं क्या सहालियाँ
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