ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
भरा है मू-ए-ब-मू सेहर-ए-सामरी जिस में
ये लाल-ए-लख़्त-ए-जिगर है वो लाल-ए-बेश-बहा
कि काम करती नहीं चश्म-ए-जौहरी जिस में
दिया है मैं ने दिल ऐसे को और परेशाँ हूँ
न मेहर है न मोहब्बत न दिलबरी जिस में
ख़ुदा दो-चार न हम से करे कभी उस को
निकलती हो तिरी आँखों से काफ़िरी जिस में
हटे है 'मानी' से लैला कि वो वरक़ तो दिखा
लिखी है सूरत-ए-मजनूँ की लाग़री जिस में
ग़ज़ब है तू ने न देखा वही मिरा दिल था
बंधी हुई थी तिरे तीर की सिरी जिस में
किसी से काम मियाँ-ए-'मुसहफ़ी' न कुछ रखिए
वो काम कीजिए हो अपनी बेहतरी जिस में
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