यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
ख़ूब देखा तो फिर कहाँ हैं हम
शम्अ की तरह बज़्म-ए-गीती में
दाग़ बैठे हैं और रवाँ हैं हम
रहे जाते हैं पीछे यारों से
गर्द-ए-दुम्बाल-ए-कारवाँ हैं हम
रख न ख़ंजर को हाथ से क़ातिल
तेरे कुश्तों में नीम-जाँ हैं हम
आबियार-ए-सुख़न है अपनी ज़बाँ
लफ़्ज़ ओ मअनी के बाग़बाँ हैं हम
तू ही तू है जो ख़ूब ग़ौर करें
एक धोका सा दरमियाँ हैं हम
दावत-ए-तेग़ के तो क़ाबिल हैं
गो कि यक-मुश्त-ए-उस्तुखाँ हैं हम
रंग-ए-रुख़ पर हमारे, ज़र्दी सी
नज़र आती है, क्या ख़िज़ाँ हैं हम
गो किया हम को सर्द पीरी ने
पर अभी तब्अ में जवाँ हैं हम
और भी हम को रहने दे चंदे
गो तिरी तब्अ पर गिराँ हैं हम
बाग़बाँ अब चमन से जावें कहाँ
बुलबुल-ए-कोहना आशियाँ हैं हम
'मुसहफ़ी' शाएरी रही है कहाँ
अब तो मज्लिस के रौज़ा-ख़्वाँ हैं हम
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