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वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता - Darsaal

वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम

वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम

क्या लुत्फ़ में गुज़रा है ग़रज़ रात का आलम

जाता हूँ जो मज्लिस में शब उस रश्क-ए-परी की

आता है नज़र मुझ को तिलिस्मात का आलम

बरसों नहीं करता तू कभू बात किसू से

मुश्ताक़ ही रहता है तिरी बात का आलम

कर मजलिस-ए-ख़ूबाँ में ज़रा सैर कि बाहम

होता है अजब उन के इशारात का आलम

दिल उस का न लोटे कभी फूलों की सफ़ा पर

शबनम को दिखा दूँ जो तिरे गात का आलम

हम लोग सिफ़ात उस की बयाँ करते हैं वर्ना

है वहम ओ ख़िरद से भी परे ज़ात का आलम

वो काली घटा और वो बिजली का चमकना

वो मेंह की बौछाड़ें वो बरसात का आलम

देखा जो शब-ए-हिज्र तो रोया मैं कि उस वक़्त

याद आया शब-ए-वस्ल के औक़ात का आलम

हम 'मुसहफ़ी' क़ाने हैं ब-ख़ुश्क-ओ-तर-ए-गीती

है अपने तो नज़दीक मुसावात का आलम

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.