वहशत है मेरे दिल को तो तदबीर-ए-वस्ल कर
वहशत है मेरे दिल को तो तदबीर-ए-वस्ल कर
पाँव में उस ग़ज़ाल के ज़ंजीर-ए-वस्ल कर
ज़ख़्मी शिकार हूँ मैं तिरा मर ही जाऊँगा
पहलू से मत जुदा तू मिरे तीर-ए-वस्ल कर
इक लहज़ा तेरी बातों से आता है दिल को चैन
हमदम ख़ुदा के वास्ते तक़रीर-ए-वस्ल कर
दस्त-ए-दराज़ अपने को तौक़-ए-गुलू मिरा
तू एक दम तो ऐ ख़म-ए-शमशीर-ए-वस्ल कर
ऐ मह ये तेरी दूर-कशी कब तलक भला
इक शब तो तू इरादा-ए-शब-गीर-ए-वस्ल कर
सीना पे सीना ख़िश्त पे गोया कि ख़िश्त है
अब ऐ फ़लक नज़ारा-ए-तामीर-ए-वस्ल कर
तोहमत लगेगी पास बिठाने से फ़ाएदा
नाहक़ न मुझ को मूरिद-ए-तक़्सीर-ए-वस्ल कर
मत चाँदनी में आ कि ज़माना ग़यूर है
इस काम को सुपुर्द-ए-शब-ए-क़ीर-ए-वस्ल कर
शायद कि पढ़ के नर्म हो दिल उस का 'मुसहफ़ी'
जा कर हवाले उस के ये तहरीर-ए-वस्ल कर
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