तू देखे तो इक नज़र बहुत है
तू देखे तो इक नज़र बहुत है
उल्फ़त तिरी इस क़दर बहुत है
ऐ दिल तू न कर हमारी ख़समी
बस इक दिल-ए-कीना-वर बहुत है
टुक और भी सब्र कर कि मुझ को
लिखना अभी नामा-बर बहुत है
हम आबला बन रहे हैं हम को
इक जुम्बिश-ए-नेश्तर बहुत है
शीशे में तिरे शराब साक़ी
टुक हम को भी दे अगर बहुत है
इस रंग से अपने घर न जाना
दामन तिरा ख़ूँ में तर बहुत है
अफ़्साना-ए-इश्क़ किस से कहिए
इस बात में दर्द-ए-सर बहुत है
मुझ को नहीं आह का भरोसा
यानी कि ये बे-असर बहुत है
इस दिल की तो तू ख़बर रक्खा कर
ये आप से बे-ख़बर बहुत है
क्या बिगड़ी है आज 'मुसहफ़ी' से
इस कूचे में शोर-ओ-शर बहुत है
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