तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है
तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है
कभू पास आए है मेरे कभू फिर भाग जाता है
ख़ुदा जाने तुझे उस की ख़बर है या नहीं ज़ालिम
कि वो इक आन में क्या क्या समयँ मुझ को दिखाता है
बलाएँ उस की मैं लेता हूँ चट चट उठ के जिस साअत
मिरी चालाकियों को देखे है और मुस्कुराता है
जो उठता हूँ तो कहता है ''किधर जाता है ईधर आ''
जो बैठूँ हूँ तो कहता है कि ''मैं जाता हूँ आता है''
जो रोता हूँ तो कहता है तू क्यूँ रोता है दीवाने
जो सर ज़ानू पे रखता हूँ तो हाथों से उठाता है
जो जागूँ हूँ तो कहता है ''कहीं अब सो भी रह नादाँ''
जो सोता हूँ तो चुटकी ले के इक दिल में जगाता है
कभी हो जाए है ग़ाएब नज़र से बात के कहते
कभी फिर सामने हो कर खड़ा बातें बनाता है
कभी दिखलाए है पिंडे का लुत्फ़ और गात का आलम
कभी नज़दीक आ बालों की अपने बू सुंघाता है
ग़रज़ ऐ 'मुसहफ़ी' मैं क्या कहूँ शब-ता-सहर यू हैं
न उस को चैन आता है न मुझ को चैन आता है
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