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शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता - Darsaal

शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक

शब शौक़ ले गया था हमें उस के घर तलक

पर ग़श सा आ गया वोहीं पहुँचे जो दर तलक

गर हम को लग गई हैं कभी हिचकियाँ तो हम

आठ आठ आँसू रोए हैं दो दो पहर तलक

डरता हूँ मैं ये गुम न करे आप को कहीं

फिर ज'अद को हुई है रसाई कमर तलक

परवाना क्या उड़े है चराग़ाँ में तो नहीं

पहुँचा जो कोई शोला तिरे बाल-ओ-पर तलक

सहरा-ए-कुश्तगाँ में तिरे कल गया था मैं

देखूँ तो लाला-ज़ार है हद्द-ए-नज़र तलक

फैलाव बहर-ए-अश्क का अपने मैं क्या कहूँ

पहुँची है मौज गर ये मिरी बहर-ओ-बर तलक

वे दिन किधर गए कि मैं लिख लिख के ख़त-ए-शौक़

जाता था आप गिर्या-कुनाँ नामा-बर तलक

शब उस की बज़्म में जो गए हम तो 'मुसहफ़ी'

ऐसे जमे कि वाँ से न उठ्ठे सहर तलक

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.