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मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था - मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता - Darsaal

मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था

मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था

यारो मिरे और उस के कब रब्त सुख़न का था

वाँ बालों में वो मुखड़ा जाता था छुपा कम कम

याँ हश्र मिरे दिल पर इक चाँद गहन का था

थे ख़त्त-ए-शिकस्ता की रुख़्सार तिरे ता'लीम

अज़-बस-के हुजूम उन पर ज़ुल्फ़ों की शिकन का था

परवाने की हिम्मत के सदक़े में कि दी शब वो

इस बे-पर-ओ-बाली पर क़ुर्बान लगन का था

आख़िर को हमें ज़ालिम पामाल किया तू ने

अंदेशा हमें दिल में तेरे ही चलन का था

मैं उस क़द ओ आरिज़ को कर याद बहुत रोया

मज़कूर गुलिस्ताँ में कुछ सर्व-ओ-समन का था

जूँ अश्क-ए-सर-ए-मिज़्गाँ हम फिर न नज़र आए

अज़-बस-के यहाँ वक़्फ़ा इक चश्म-ए-ज़दन का था

दो फूल कोई रख कर गुज़रा था जो कल याँ से

तुर्बत पे मिरी बुलवा मुर्ग़ान-ए-चमन का था

जिस मुर्ग़-ए-चमन को मैं देखा तो चमन में भी

हसरत-कश-ए-नज़्ज़ारा उस रश्क-ए-चमन का था

शब देख मह-ए-ताबाँ था 'मुसहफ़ी' तू हैराँ

क्या इस में भी कुछ नक़्शा उस सीम-बदन का था

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In Hindi By Famous Poet Mushafi Ghulam Hamdani. is written by Mushafi Ghulam Hamdani. Complete Poem in Hindi by Mushafi Ghulam Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.