मुद्दत से हूँ मैं सर-ख़ुश-ए-सहबा-ए-शाएरी
मुद्दत से हूँ मैं सर-ख़ुश-ए-सहबा-ए-शाएरी
नादाँ है जिस को मुझ से है दावा-ए-शाएरी
मैं लखनऊ में ज़मज़मा-संजान-ए-शहर को
बरसों दिखा चुका हूँ तमाशा-ए-शाएरी
फबता नहीं है बज़्म-ए-अमीरान-ए-दहर में
शाएर को मेरे सामने ग़ाैग़ा-ए-शाएरी
इक तुर्फ़ा ख़र से काम पड़ा है मुझे कि हाए
समझे है आप को वो मसीहा-ए-शाएरी
है शायरों की अब के ज़माने में ये मआश
फिरते हैं बेचते हुए काला-ए-शाएरी
लेता नहीं जो मोल कोई मुफ़्त भी उसे
ख़िफ़्फ़त उठा के आते हैं घर वाए शाएरी
ऐ 'मुसहफ़ी' ज़ी-गोशा-ए-ख़लवत-बरूँ ख़िराम
ख़ालीस्त अज़-बराए तू ख़ुद जा-ए-शाएरी
हर सिफ़्ला-रा ज़बान-ओ-बयान-ए-तू-कै रसद
आरे तुई फ़ुग़ानी ओ बाबा-ए-शाएरी
मजनूँ मनम चिरा दिगरे रंज मी बुरद
दर हिस्सा-ए-मन आमदा लैला-ए-शाएरी
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