माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
महजूबा अभी हिजाब में है
मेहंदी न लगा कि जान मेरी
हाथों से तिरे अज़ाब में है
तू है वो बला कि माह ओ ख़ुर्शीद
ज़ुल्फ़ों की तिरे रिकाब में है
हर इक तुझे आप सा कहे है
क़ज़िया मह ओ आफ़्ताब में है
अल्लाह-रे तिरे पसीने की बू
कब ऐसी भभक गुलाब में है
इस ज़ुल्फ़ का ऐंठना तो देखो
बिन छेड़े ही पेच-ओ-ताब में है
क़हहारी की शान जब से तेरी
आलम के ऊपर इताब में है
दिल कोह का हो गया है पानी
दरिया सब इज़्तिराब में है
उठ 'मुसहफ़ी' आफ़्ताब निकला
अब तक तू दिवाने ख़्वाब में है
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