लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे
लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे
ये छेड़ क्या निकाली ऐ यार बैठे बैठे
कल वाअदा-गाह में जब वो बेवफ़ा न आया
उकता के उठ गए हम नाचार बैठे बैठे
जो कुछ पढ़ा है हम ने हम आफी-आप उस की
घर में किया करें हैं तकरार बैठे बैठे
हम ने तो उस को हरगिज़ यारो कहा न था कुछ
कुछ यूँही हो गया वो बेज़ार बैठे बैठे
तुझ बिन तो हम ने वे भी बा-ख़ामशी अदा कीं
याद आईआं जो बातें दो-चार बैठे बैठे
ऐ 'मुसहफ़ी' उन्हीं में सनअत नहीं कुछ अपनी
लिख डाले हम ने कल ये अशआर बैठे बैठे
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