क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
अल्लाह-रे तिरा ग़ुरूर अल्लाह
हुस्न ऐसा कहाँ है महर-ओ-मह में
कुछ और ही है ये नूर अल्लाह
हम ने तो ब-चश्म-ख़्वेश देखा
हर शय में तिरा ज़ुहूर अल्लाह
हम हैं तिरे बंदे मेरे साहिब
गो शैख़ को देवे हूर अल्लाह
पहलू से मिरे निकल गया बुत
क्या मुझ से हुआ क़ुसूर अल्लाह
जिस दम में करूँ हूँ नाला दिल से
उठता है कितना शोर अल्लाह
ऐ 'मुसहफ़ी' हक़ नहीं समझता
कितना हूँ मैं बे-शुऊर अल्लाह
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