किधर जाइए और कहाँ बैठिए
किधर जाइए और कहाँ बैठिए
परिचिता नहीं दिल जहाँ बैठिए
मैं देखा तुम्हें ख़ूब पर्दे में अब
ज़रा और हो कर निहाँ बैठिए
खड़े देखते क्या हो फिर आइए
करम कीजिए मेहरबाँ बैठिए
अभी से कहाँ उठ चले कोई दम
ग़नीमत है सोहबत मियाँ बैठिए
तिरे हाथों से ऐ जफ़ा-ए-फ़लक
बता तू ही छुप कर कहाँ बैठिए
बिठाया मुझे तुम ने ज़िंदाँ में ख़ूब
मैं बैठा बस अब दोस्ताँ बैठिए
तुम आँखों में क्या बैठते हो मिरी
ब-पहलू-ए-दिल मिस्ल-ए-जाँ बैठिए
नहीं बैठने की तुम्हारे वो जा
इधर आइए अब यहाँ बैठिए
न पहुँचोगे मंज़िल को तुम 'मुसहफ़ी'
गया दूर अब कारवाँ बैठिए
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