कभी तो बैठूँ हूँ जा और कभी उठ आता हूँ
कभी तो बैठूँ हूँ जा और कभी उठ आता हूँ
मनूँ हूँ आप ही फिर आफी रूठ जाता हूँ
मोआ'मला तो ज़रा देखियो तू चाहत का
मुझे सतावे है वो उस को मैं सताता हूँ
रुका हुआ वो मुझे देख कर जो बोले है
तो बोलता नहीं मैं उस से सर हिलाता हूँ
पर इतने में जो मैं सोचूँ हूँ ये न रुक जावे
ज़बाँ पे अपनी भी इक-आध हर्फ़ लाता हूँ
कहे है दिल ये कि ऐसे से दोस्ती है अबस
बुराइयों का जो उस की ख़याल लाता हूँ
ये कह के बैठ रहूँ हूँ जो अपने घर में ज़रा
तो दिल कहे है ये घबरा के ''मैं तो जाता हूँ''
जब अपना हाल ये देखूँ हूँ मैं तो होना चार
झपट के पीछे से दिल के क़दम उठाता हूँ
बता तू 'मुसहफ़ी' क्या तुझ को हो गया कम-बख़्त
कुछ इन दिनों तिरा चेहरा तग़ीर पाता हूँ
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